नैक्रोफीलिया "मृत व्यक्ति के साथ अविश्वसनीय संबंध"
मानव जाति में कुछ मानसिक बीमारियां ऐसी होती हैं जिनके बारे में सोच कर ही मन में खौफ आता है इन बीमारियों के लक्षण मात्र जाने से ही मन में बेचैनी होने लगती है और दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाता है की इंसानों में इस तरह की बीमारी पनपती कैसे है ?और कैसे कोई इंसान इस तरह की मानसिक बीमारी का शिकार हो सकता है? ऐसी ही बीमारियों में एक बीमारी का नाम है "नैक्रोफीलिया"।
अब आप इस नाम को पढ़कर यह सोच रहे होंगे कि यह कोई साधारण मानसिक बीमारी होगी लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है नैक्रोफीलिया बहुत ही जटिल और खौफनाक बीमारी है नैक्रोफीलिया से ग्रसित व्यक्ति अन्य लोगों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है खासकर की महिलाओं के लिए।
नेक्रोफिलिया क्या है ?
नेक्रोफिलिया एक मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति शव यानी लाश के साथ बलात्कार करता हैअगर मनोवैज्ञानिकों की मानें तो सामान्य रूप से यह बीमारी हर 10 लाख व्यक्तियों में से एक को होती है,
नैक्रोफीलिया से ग्रसित व्यक्ति जीवित महिला के साथ बलात्कार करने के अलावा मृत महिला के शरीर से भी बलात्कार करते रहते हैं
आइए आपको एक पुरानी और आश्चर्यजनक मौत के बारे में बताते हैं इस मौत के बारे में जानकर आप भी आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि कोई महिला अपने लिए ऐसी मौत कैसे चुन सकती है।
मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपेट्रा ने जो मौत चुनी उससे दुनिया स्तब्ध थी, आखिर क्यों एक औरत नग्न अवस्था में अपने स्तन पर सांप से डसवाएगी,लेकिन वो जानती थी कि जिसने मिस्र पर हमला किया है वे दरिंदो फ़ौज के लोग है
फिर भी आपको बता दूं कि इतिहासकार कहते हैं कि उसके शव के साथ तीन हज़ार बार बलात्कार किया गया था,
रानी पद्मावती ने भी लड़कर मरने के बजाय जौहर चुना,अभी जब पिछले दिनों फ़िल्म आई तो कितने लोगों ने कहा कि वो तो योद्धा थी,लड़कर क्यों नहीं मरी ? जौहर क्यों चुना ?
तो इसका स्प्ष्ट कारण था ख़िलजी और वैसे ही दरिंदो की फ़ौज,रानी जानती थी की अगर लड़ते हुए उसने और उसकी साथी औरतों ने जान दी तो उसके शरीर के साथ क्या होगा?
पाकिस्तान मीडिया में ऐसी ख़बरें बरसो से आती रहती हैं। वहाँ क़ब्र खोद कर ये बहशी बलात्कार करते हैं। इसलिए वहां दफन की गई लाशों की कई दिनों तक रखवाली की जाती है
नेक्रोफिलिया से संबंधित यौन व्यवहार के गंभीर सामाजिक और कानूनी परिणाम हो सकते हैं। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विशेषज्ञ और कानूनी नीति परिषदें नेक्रोफीलिया को बलात्कार के कृत्य के रूप में मानती हैं
मृत्युओं और आत्मघातों से भरे इतिहास, मिथकों और दंतकथाओं में जो मौत सर्वाधिक आकृष्ट करती है, वह है मिस्र की अंतिम फैरो सम्राज्ञी क्लियोपैट्रा की मौत।
जूलियस सीज़र की मौत के 14 शाल बाद और मार्क एंटनी के आत्मघात के ताज़ातरीन ज़ख़्म के बाद जब क्लियोपैट्रा ने जाना कि ऑक्टेवियस (रोमन साम्राज्य का संस्थापक, जिसे बाद में “ऑगस्टस” के नाम से जाना गया) की फ़ौजें अलेक्सैंड्रिया में प्रवेश कर चुकी हैं और सर्वनाश समीप है तो उसने ओक्टेवियस के नाम एक संदेश भिजवाया, “मैं मार्क एंटनी के साथ ही अपनी आखिरी नींद सोना चाहती हूं.” संदेश मिलते ही ऑक्टेवियस के सैनिक दौड़े लेकिन तब तक देरी हो चुकी थी.
30 अगस्त, 30 ईसवी पूर्व. क्लियोपैट्रा ने दूध से स्नान किया, सोने के आभूषण पहने, एक एस्प सांप (इजिप्शियन कोबरा) को उसकी पेटिका से निकाला और उसके साथ खेलते हुए उसे अपनी निर्वसन देह (बाएं वक्ष) पर अपने विषदंत गड़ाने दिए. जब तक रोमन सैनिक पहुंचे, तब तक क्लियोपैट्रा की मौत हो चुकी थी. उसकी अनुचारिका कैर्मियोन से पूछा जाता है कि क्या यह साम्राज्ञी ने स्वयं किया, जिस पर वह जवाब देती है, “बिल्कुल, और उन्होंने यह बहुत अच्छे-से किया.” यह कहकर कैर्मियोन गिर पड़ती है. उसने और उसकी साथी एइरास ने भी विषपान कर लिया था.
जिस अनिंद्य सुंदरी की देह की लालसा अनेक शासकों में रही, उसे अंतत: एक विषधर ने मौत का चुम्बन दिया।
यूनानी भूगोलविद स्त्राबो ने क्लियोपैट्रा की मृत देह और फर्श पर रेंगते एस्प सांप को देखा था. स्त्राबो के वर्णन के आधार पर रोमन महाकवि प्लूटार्क ने अपनी पुस्तक “लाइफ़ ऑफ़ एंटनी” में इस किस्से को दर्ज किया, और फिर बाद में शेक्सपीयर ने अपने नाटक “एंटनी एंड क्लियोपैट्रा” में भी इसी मिथक को आधार बनाया.
“Here, on her breast, there is a vent of blood”, ये शेक्सपीयर के स्मरणीय शब्द हैं. वर्जिल, होरेस, प्रोपर्शियस, इन सभी रोमन कवियों के वर्णन में क्लियोपैट्रा की मौत के इसी मिथक को बारम्बार किंचित बदलावों के साथ दोहराया गया है।
शेक्सपियर के नाटक एंटनी एंड क्लियोपैट्रा में क्लियोपैट्रा के ये आखिरी शब्द थे:
(सांप से)अपने दांत गड़ा कर मुझे मेरी जान से जुदा कर दो. गुस्से से भर जाओ, और मुझे काट लो. अगर तुम बोल सकते, तो मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती. कि वो (ऑक्टावियस) सीजर कितना बड़ा बेवकूफ है जिसे मैंने हरा दिया ,
नैक्रोफीलिया होने के क्या कारण हो सकते हैं
नैक्रोफीलिया एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसको मनस्ताप के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है। इसमे व्यक्ति की भावनाओं तथा संवेग में कुछ समय के लिए असामान्य परिवर्तन आ जाते है, जिनका प्रभाव उसके व्यवहार, सोच, निद्रा, तथा सामाजिक मेल जोल पर पड़ने लगता है। यदि इस बीमारी का उपचार नहीं कराया जाए तो इसके बार-बार होने की संभावना बहुत हो जाती है।
यह रोग ऐसे व्यक्तियों को होता है जिनमें मानसिक दुर्बलता होती है और जिसके कारण वे बाह्य तथा संवेगात्मक परिस्थितियों से सहज ही उद्वेलित हो जाते हैं।
क्या नैक्रोफीलिया स्त्री और पुरुष दोनों में हो सकता है?
वर्तमान अनुसंधानों द्वारा प्रमाणित हो गया है कि यह मानसिक रोग स्त्री और पुरुष दोनों में होता है। प्राचीन तथा मध्यकालीन युग में इस रोग का कारण भूत-प्रेत माना जाता था। इसके उपचार के लिए झाड़ फूँक, गंडे ताबीज आदि का उपयोग होता था। आधुनिक काल में शारकों, जैने, मॉटर्न प्रिंस और फ्रॉयड इत्यादि मनोवैज्ञानिकों ने इसका कारण मानसिक बतलाया है। necrophilia में प्राय: मानसिक विकार का परिवर्तन शारीरिक विकार में हो जाता है। रिबट का कथन है कि मानसिक क्षोभ की अवस्था शारीरिक क्रियाओं में प्रकट होती है। फेरेंक्ज़ी का कथन है कि परिवर्तित शारीरिक क्रियाएँ मानसिक विकार की प्रतीक होती हैं।
नैक्रोफीलिया से उत्पन्न होने वाले परिवर्तन
(1) इसमें काम प्रवृत्ति का प्राधान्य रहता है,
(2) इसमें बचपन की अनुभूतियों का विशेष महत्व होता है।
नैक्रोफीलिया में प्राय:काम उत्तेजना संबंधी अनुभूतियों का पुन:स्फुरण होता है। अक्सर वे ही व्यक्ति इस रोग के शिकार होते हैं जिनकी कामशक्ति का उचित विकास नहीं हो पाता। वस्तुत: रोगी की क्रियाओं और सम्मोहनावस्था तथा कामविपरीतीकरण की क्रियाओं में पर्याप्त समानता मिलती है। विकृत कामभाव होने के कारण जब रोगी से कुछ पूछा जाता है तो वह यही कहता है : ""मैं नहीं जानता, मुझे ऐसी कुछ बातें स्मरण नहीं हैं"" - इसका अर्थ यह है कि वह कुछ कहना नहीं चाहता क्योंकि इससे उसके अज्ञात अचेतन मन में पड़ी भावनग्रंथि को ठेस पहुँचती है।
नैक्रोफीलिया होने के कई कारण हो सकते हैं
#दिमाग में रसायनों का असंतुलित होना,
#ऐसी किसी घटना का होना जिसका रोगी के जीवन पर गहरा असर पड़ा हो,
#किसी तरह का मानसिक दबाव होना,
परन्तु किसी एक कारण को इस बीमारी के होने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता है। यह रोग किसी भी वर्ग, जाति, धर्म, लिंग या उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। जिनके परिवार में किसी सदस्य को यह रोग हो या हो चुका हो उनमें यह रोग होने की संभावना कुछ अधिक होती है। अत्याधिक तनाव, सामाजिक दबाव, तथा परेशानियाँ भी बीमारी को बनाये रखने या ठीक न होने का कारण बन सकती हैं।
नैक्रोफीलिया के लक्षण कैसे पहचाने जा सकते हैं
*बिना कारण हँसना, बोलना, नाचना, गाना,
*सामान्य से अधिक खुश रहना,
*सोने की इच्छा में कमी,
*बड़े-बड़े दावे (बातें) करना, खुद को बड़ा बताना,
*अपने अन्दर अत्यधिक शक्ति का अनुभव करना, बहुत सारे काम एक साथ करने की कोशिश करना, परन्तु किसी भी काम को सही से न कर पाना,
*यौन इच्छा में वृद्वि,
*अपनी क्षमता से परे खर्चे करने की इच्छा करना,
*छोटी-छोटी बातों पर या बेवजह गुस्सा हो जाना, विवादो या झगडों में पड़ जाना.
क्या नैक्रोफीलिया का उपचार संभव है
इस रोग के उपचार की सबसे उपयुक्त विधि मुक्त साहचर्य है। प्रारंभ में सम्मोहन का प्रयोग होता था। किंतु यह सफल नहीं रहा। मुक्त साहचर्य से रोगी का रुख जीवन के प्रति परिवर्तित हो जाता है और वह स्थायी रूप से, अल्प अथवा दीर्घकाल में रोग से मुक्त हो जाता है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तथा मानसिक स्वास्थ्य के नियमों से अवगत कराने से लाभ होता है। इसमें औषधि, प्रघात चिकित्सा तथा शल्य उपचार का प्रयोग नहीं किया जाता।
नैक्रोफीलिया से ग्रसित व्यक्ति की सहायता कैसे की जा सकती है
इन्हे मनोचिकित्सक की जरूरत है।
तुरंत मनोचिकित्सक से मिलें,
दवा नियमित रूप से लें, बीमारी के लक्षण नहीं रहने पर दवा का सेवन बिना डाक्टरी सलाह के बंद न करें,
यदि रोगी नशा लेता हो तो नशे के सेवन पर पाबंदी लगाई जाए,
रोगी के आस-पास वातावरण को तनावमुक्त बनाए रखें,
रोगी के सम्मान व जरूरतों का ध्यान रखें।
इलाज के लिए दवाइयाँ, इंजेक्शन और टेबलेट दोनों रूप में मिलते हैं। मनोचिकित्सक की सलाह से तुरंत इलाज शुरू कर दें। नियमित जाँच के लिए डॉक्टर द्वारा बुलाने पर मरीज़ को समय पर अवश्य लेकर आयें। लगातार दवाई के सेवन से सिर्फ़ वर्तमान बीमारी ही ठीक नहीं होती पर भविष्य में भी बीमारी के फिर से उभरने की सम्भावना कम हो जाती है। बिना डाक्टरी सलाह के इलाज बंद करने पर बीमारी के दोबार होने की संभावना बढ़ जाती है। इसका इलाज लंबे समय तक चल सकता है इसलिए चिकित्सक की सलाह के बिना दवा को घटाया-बढाया नहीं जाना चाहिए।
दवा खाते हुए कुछ अनावश्यक प्रभावों (साइड एफ्फेक्ट्स) का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि-
(१) हाथ-पाँव में कम्पन होना,
(२) मुँह सुखना, कब्ज होना,
(३) उबकाई या उल्टी आना,
(४) अत्याधिक शिथिलता रहना,
(५) वजन का बढ़ना, आदि,
इन अनावश्यक प्रभावों के हाने पर दवा का सेवन रोके नही, क्योंकि यह समय के साथ अपने आप ही कम हो जाते हैं, तथा इनको रोकने के लिए सामान्य सी सावधानियाँ भी रखी जा सकती हैं-
उचित मात्रा में पानी पियें जिससे कब्ज़ियत न हो
समय पर निद्रा (6-7 घंटे) लें,
संतुलित आहार करें,
नियमित व्यायाम करें।
नैक्रोफीलिया से ग्रसित व्यक्ति की देखभाल कैसे की जा सकती है
यदि आपको लगे की किसी व्यक्ति में यह लक्षण हैं तो रोगी के व्यवहार में आए बदलाव देख कर घबरायें नही,
अपना समय किसी झाड़-फूंक में व्यर्थ ना करें, यह एक मानसिक बीमारी है जिसका डॉक्टरी इलाज सम्भव है,
उसे सही गलत का ज्ञान देने की कोशिश न करे क्योंकि मरीज आपकी बातें समझ पाने की अवस्था में नहीं है,
यह बदलाव कुछ समय के लिए व्यक्ति के व्यवहार को असामान्य बना सकतें हैं व बीमारी के ठीक होने के साथ ही व्यक्ति का व्यवहार फ़िर से सामान्य हो जाता है,
रोगी से बहस न करें,
रोगी को व्यायाम करके अपने शक्ति को सही दिशा में इस्तेमान करने में मदद करें,
रोगी को मारें या बाँधें नहीं बल्कि डॉक्टर की मदद से उसे शांत करने की कोशिश करें,
व्यवहारिक बदलाव इस बीमारी के लक्षण हैं रोगी के चरित्र की खराबी नही,
मरीज़ कि यह हालत बीमारी के कारण है इसलिए उसे समझकर उसे सहयोग दें, तथा उसके सम्मान की रक्षा करें,
उस पर विश्वास रखें क्योंकि बीमारी के नियंत्रण में आने के बाद वह अपने सारे उत्तरदायित्व ठीक से निभा सकता है,
ठीक होने के बाद उसे सामान्य जीवन जीने में मदद करें,
मानसिक बीमारी शारीरिक बीमारी की तरह ही है, जिसका इलाज कुछ लंबे समय तक चल सकता है,
जल्दी उपचार से भविष्य में आने वाली कई समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है,
अपनी परेशानियों के बारे में रिश्तेदारो व दोस्तो से सहयोग लें।
क्या नैक्रोफीलिया मानव जाति के अलावा किसी अन्य जाति में भी हो सकता है?
जी हां ,स्तनधारियों, पक्षियों, सरीसृप और मेंढक में नेक्रोफिलिया को देखा गया है। 1960 में, रॉबर्ट डिकरमैन ने जमीन गिलहरी में नेक्रोफिलिया का वर्णन किया, जिसमें उन्होंने डेव नामक नेक्रोफिलियाक के बारे में बताया और इसे लिमरिक के संदर्भ में "डेवियन व्यवहार" कहा। डेवियन व्यवहार को जानवरों में necrophilia के लिए उपयोग किया जाता है।
इसी प्रकार एराचैड्स और कीड़े की कुछ प्रजातियों में लैंगिक नरभक्षण का अभ्यास होता है, जिसमें मादा उसके पुरुष साथी से पहले, उसके दौरान, या संभोग के बाद काट सकती है। और मृत अवस्था में भी अपने साथी के साथ संभोग क्रिया कायम रखती है
नैक्रोफीलिया कितने रूपों में पाई जाती है?
नेक्रोफिलिया एक पैराफिलिया है जिससे अपराधी को मृतकों के साथ यौन संबंध बनाने में यौन सुख मिलता है। अधिकांश न्यायालयों और देशों में इस प्रथा के खिलाफ कानून हैं। नेक्रोफिलिया कई रूपों में मौजूद है, और कुछ लेखकों ने नेक्रोफिलिया को वर्गीकृत करने का प्रयास किया है। हालाँकि कई संबंधित शर्तें जैसे कि स्यूडोनोक्रॉफ़िलिया को अलग-अलग लेखकों द्वारा अलग-अलग तरीके से उपयोग किया जाता है, वर्गीकरण प्रणाली द्वारा 10 वर्गों के तहत नेक्रोफिलिया के सभी अलग-अलग रंगों को डालने का प्रयास किया गया है
रोज़मैन और रेसिक (1989) नेक्रोफिलिया के 122 मामलों की समीक्षा की। नमूना मूल नेक्रोफाइल्स में विभाजित किया गया था,
नेक्रोफाइल खराब आत्मसम्मान विकसित करता है, शायद एक महत्वपूर्ण नुकसान के कारण; (ए) वे दूसरों द्वारा अस्वीकृति से बहुत डरते हैं और वे एक यौन साथी की इच्छा रखते हैं जो उन्हें अस्वीकार करने में असमर्थ है; या (बी) वे मृतकों से डरते हैं, और उनके भय को बदल देते हैं
वे एक लाश के साथ सेक्स की एक रोमांचक कल्पना विकसित करते हैं, कभी-कभी एक लाश के संपर्क में आने के बाद स्वयं अपनी इस कल्पना शक्ति को वास्तविकता में परिवर्तित कर देते हैं
लोगों ने बताया कि,
* 68% एक अनौपचारिक और अप्रतिबंधित साथी की इच्छा से प्रेरित थे;
*एक खोए हुए साथी के साथ पुनर्मिलन की इच्छा द्वारा 21%;
* मृत लोगों के लिए यौन आकर्षण द्वारा 15%;
* आराम की इच्छा या अलगाव की भावनाओं को दूर करने के लिए 15%; तथा
* एक लाश पर शक्ति व्यक्त करके कम आत्मसम्मान को मापने की इच्छा से 12%।
*भूमिका निभाने वाले लोग: वे लोग जो अपने लिव इन पार्टनर के बहाने उठते हैं, यौन क्रिया के दौरान मर जाते हैं।
नैक्रोफीलिया के रूप
# रोमांटिक नेक्रोफिलियास: शोक संतप्त लोग जो अपने मृत प्रेमी के शरीर से जुड़े रहते हैं।
# नेक्रोफिलिक फंतासी: जो लोग नेक्रोफिलिया के बारे में कल्पना करते हैं, लेकिन वास्तव में एक लाश के साथ यौन संबंध नहीं रखते हैं।
# टैक्टाइल नेक्रोफिलियाक्स: जो लोग संभोग में संलग्न हुए बिना, एक लाश को छूने या पथपाकर उत्तेजित होते हैं।
# फेटिशिस्टिक नेक्रोफिलियाक्स: वे लोग जो संभोग के बिना संभोग के लिए एक लाश से वस्तुओं (जैसे, पैंटी या टैम्पोन) या शरीर के अंगों (जैसे, एक उंगली या जननांग) को निकालते हैं।
# Necromutilomaniacs: जो लोग संभोग में संलग्न हुए बिना हस्तमैथुन करते हुए एक लाश को विकृत करने से खुशी प्राप्त करते हैं।
# अवसरवादी नेक्रोफिलियाक्स: वे लोग जिन्हें आमतौर पर नेक्रोफिलिया में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन जब यह पैदा होता है तो अवसर लेते हैं।
# नियमित रूप से परिगलन: जो लोग अधिमानतः मृतकों के साथ संभोग करते हैं।
#होमिसाइडल नेक्रोफिलियाक्स: जो लोग मृतकों के साथ यौन संबंध बनाने के लिए हत्या करते हैं।
# विशिष्ट नेक्रोफीलिक्स: वे लोग जो मृतकों के साथ सेक्स में विशेष रुचि रखते हैं, और जीवित भागीदारों के लिए बिल्कुल भी प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं।
2 comments:
Very nyc
Thnku sir
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